दोस्ती में 3 रेड फ्लैग्स जिन्हें साइकोलॉजी के अनुसार नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए
चलिए बात करते हैं तीन ऐसे फ्रेंडशिप रेड फ्लैग्स की, जिन्हें अनदेखा करना आपको इमोशनली भारी पड़ सकता है।
1. One-Sided Relationship
साइकोलॉजिकल टर्म में इसे कहते हैं: "one-sided relationship"
अगर कोई रिश्ता सिर्फ एक ही इंसान के दिए गए समय, ऊर्जा और इमोशनल इन्वेस्टमेंट पर टिका है, तो वो हेल्दी नहीं है।
आप ही हमेशा कॉल करें, आप ही हर प्लान बनाएं, आप ही हर बार सपोर्ट करें — और सामने वाला सिर्फ ‘लेता’ ही जाए — तो ज़रा रुकिए।
साइकोलॉजिस्ट्स मानते हैं कि हेल्दी दोस्ती में बैलेंस होना चाहिए। Give and take दोनों तरफ से होना जरूरी है।
सवाल: क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप किसी दिन मदद माँग लें तो क्या वो दोस्त भी उतनी ही इमेजेंसी में आपके लिए आएगा?
2. वो हमेशा आपका मज़ाक उड़ाते हैं – और कहते हैं ‘अरे, मज़ाक था’
ये तो सबसे कॉमन रेड फ्लैग है — और सबसे खतरनाक भी।
अगर कोई दोस्त आपकी insecurities या आपके डर को बार-बार 'चुटकुलों' में बदल देता है, और जब आप उन्हें टोकते हैं तो वो कहते हैं, “इतना भी मत ले यार, मज़ाक था” — तो यह सीधा संकेत है कि वो आपकी boundaries की इज्ज़त नहीं करते।
साइकोलॉजिकल रिसर्च के अनुसार, ये behavior “micro-aggressions” की कैटेगरी में आता है — यानी छोटे-छोटे comments जो लंबे समय में आपके self-esteem को बुरी तरह तोड़ सकते हैं।
सोचिए: क्या आपका सेंस ऑफ ह्यूमर उनके jokes के आगे कहीं खोता जा रहा है?
3. जब आपको खुशी मिले, तो वो खुश नहीं होते
अब ये सबसे subtle लेकिन सबसे ज़रूरी red flag है।
Psychology इसे कहता है: “covert jealousy disguised as indifference” — यानी छिपी हुई जलन जो अनदेखी मुस्कान के पीछे छुपी होती है।
अगर आपके प्रमोशन की बात पर वो "अरे वाह, अच्छा है" कहकर बात बदल देते हैं, या आपकी नई उपलब्धि पर कोई genuine excitement न हो — तो वो सच में दोस्त हैं या एक competition बना बैठे हैं?
दोस्ती वो रिश्ता होता है जहाँ आपकी खुशी उनकी खुशी बनती है।
अगर ऐसा नहीं है, तो शायद वो दोस्त नहीं, बस एक 'पास बैठा प्रतिद्वंद्वी' है।
तो अब सवाल ये है — आप क्या कर सकते हैं?
सबसे पहले: इन रेड फ्लैग्स को इग्नोर करना बंद कीजिए।
दूसरा: अगर आप खुद को थका हुआ, कमतर या अनसेफ महसूस करते हैं किसी दोस्ती में — तो बात कीजिए। अगर सामने वाला वाकई दोस्त है, तो चीज़ें बेहतर होंगी। और अगर नहीं... तो दोस्त बदलने में कोई बुराई नहीं है।
जैसा कि साइकोलॉजिस्ट Carl Jung ने कहा था:
“Loneliness does not come from having no people around, but from being unable to communicate the things that matter to you.”
अगर ये आर्टिकल आपको थोड़ा भी सोचने पर मजबूर करे, तो इसे ज़रूर शेयर कीजिए। और अगली बार किसी दोस्त की बात ‘अजीब’ लगे, तो अपने gut feeling को नज़रअंदाज़ मत कीजिए।
अब आप सोचिए — क्या आपकी किसी दोस्ती में ये तीन में से कोई एक रेड फ्लैग है?
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